पटना।। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक निजी चैनल के लोकप्रिय 'टाक शो' में भाजपा और नमो (नरेंद्र मोदी) पर तीखे प्रहार किए। हालांकि उन्होंने खुद न तो भाजपा का नाम लिया, न ही नरेंद्र मोदी का। उनसे पूछे गए सवालों के दौरान ये नाम जरूर आए।
मुख्यमंत्री ने किसी का नाम लिए बगैर कहा कि-'वे लोग' नाजियों और फासिस्टों के अंदाज में अपने से असहमत लोगों को दबा रहे हैं। उनको विरोध बर्दाश्त नहीं है। जैसे जानवरों के मुंह पर जाबी लगायी जाती है ठीक उसी तरह कर रहें वो। बिहार के एक नामी-गिरामी पत्रकार ने एक बार जब 'उनकी' आलोचना की, तो सोशल मीडिया पर कैम्पेन चलाकर वरिष्ठ पत्रकार को अपमानित किया गया। यह तो छोड़ दीजिए, 'उन लोगों' ने नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डा.अमर्त्य सेन तक को नहीं बख्शा। डा.सेन के खिलाफ भी बड़े स्तर पर सोशल मीडिया में अभियान चलाया। यह एक खतरनाक ट्रेंड है। ठीक उसी तरह की बात है, जैसे नाजी और फासिस्ट किया करते थे, जैसे उनको लोकतंत्र से पूरी तरह से असहमति थी। लोकतंत्र की बात करने वाले 'उनको' बर्दाश्त नहीं है।
मुख्यमंत्री ने पुरानी बातें भी खूब की। एंकर को बताया कि 2010 में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में नरेंद्र मोदी को आमंत्रित करने की बात हुई थी तब मैं तो राज्यपाल को अपना इस्तीफा देने की तैयारी करने लगा था। मात्र दस मिनट का फासला था राजभवन से। भाजपा और राजद के रिश्ते पर भी बोले मुख्यमंत्री। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि 'साफ-साफ अंडरस्टैंडिंग, यानी स्पष्ट समझ है दोनों की। दोनों की बोली भी एक ही निकलती है।' उन्होंने कहा कि ऐसा संभव है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में जदयू को नुकसान पहुंचाने के लिए भाजपा और राजद नीतिगत समझ विकसित कर लें।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा के साथ उनका गठबंधन सत्रह वर्षो तक चला। यह गठबंधन बुनियादी मुद्दों पर आधारित था। यह तय था कि विवादास्पद मुद्दों को किनारे रखा जाएगा। जब कहीं भी गठबंधन होता है तो वहां गठबंधन में शामिल पार्टी एक-दूसरे का सम्मान करती है और कुछ बुनियादी समझ भी रहती है पर भाजपा इससे भटक गई।
'टाक शो' में मुख्यमंत्री से मशरख में मिड डे मील खाने से बच्चों की हुई मौत पर भी सवाल किए गए। उन्होंने कहा कि 'मैं आहत हूं, गहरा दुख है इसका। हमलोगों ने तय किया है कि उक्त दुर्घटना में मारे गए बच्चों की स्मृतियों में वहां एक स्मारक बनाएंगे। वहां सड़क और एक हाईस्कूल भी बनाया जाएगा।'