सिवान।। कई बार कामयाबी चौंकाती है। जीरो से यात्रा शुरू करने वाले एक शख्स की कहानी ऐसी ही है। कभी मेडिकल शॉप और एमआर की नौकरी करने वाला यह व्यक्ति आज सौ करोड़ की दवा कंपनी का मालिक है। योजना अगले कुछ वर्षों में इसे पांच सौ करोड़ तक ले जाने की है।
बिहार के एक गांव से निकलकर यह शख्स जब अहमदाबाद पहुंचा तो जेब में थे महज चार हजार रुपये। चारों ओर घुप्प अंधेरा। लेकिन कुछ नया करने का सपना उस नौजवान की आंखों में समा चुका था। यह शख्स है श्रीनिवास प्रसाद।
छपरा के दिघवारा में पिता की एक छोटी सी हार्डवेयर की दुकान थी। पिता चाहते थे कि उसे मैं चलाऊं। लेकिन मेरा इरादा कुछ और था। पता नहीं यह बात मेरे मन में कैसे बैठ गयी कि हमें यह दूकान नहीं करनी है। हमें कुछ अलग करना है।
पिता से विद्रोह कर वर्ष 1975 में दिघवारा में ही एक मेडिकल स्टोर खोल लिया। एक साल तक वह चला। फिर लगा कि बात इससे भी नहीं बनेगी। और कुछ किया जाये।
छपरा में एक दवा कंपनी का एमआर बन गया। यह बात 1976 की है। तीन सौ महीना मिलता था और तीन सौ अलाउएंस। कुल मिलाकर छह सौ रुपये। खूब भाग-दौड़ की।
एक छह महीने बाद ही लगने लगा कि मेरा यहां भी गुजर नहीं होने वाला है। किसी को हमसे दिक्कत किसी को नहीं थी। खुद मुझे ही अपने से दिक्कत हो रही थी। मन कह रहा था कि चलो कुछ अलग किया जाये।
अहमदाबाद के लिए निकल पड़ा, जेब में थे चार हजार रुपये घर से अहमदाबाद के लिए निकल पड़ा। मन में तरह-तरह के खयाल आ रहे थे।
मेरा वहां कोई जान-पहचान वाला भी नहीं था। क्या होगा? वहां क्या करूंगा? नये लोग। नया शहर। गाड़ी जैसे-जैस आगे बढ़ रही थी, मेरा मन डोल रहा था।
मुझे याद कि जब ट्रेन लखनऊ पहुंची तो मन में आया कि घर लौट जाऊं। पर गाड़ी आगे बढ़ती रही। वहां पहुंचा तो वहां रहने की समस्या थी। छह रुपये बेड पर एक सरदार जी डोरमेटरी चलाते थे। उसी में रहने लगा।
कुछ दिन रहने के बाद दो हजार रुपये की दवा लेकर घर लौट आया, कमीशन पर। यहां आकर साइकिल से उसे बेचने लगा। अपनी पहुंच बढ़ाने के इरादे से मोटर साइकिल ले ली।