आज देश के सियासी हालात में बस एक ही बात पर खूब चर्चा हो रही है। चर्चा इस बात पर हो रही है कि कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह सही कह रहे हैं या कांग्रेस पार्टी के अकेले ब्राह्मण नेता जनार्दन द्विवेदी। दिग्विजय सिंह और जनार्दन द्विवेदी दोनों ही ने अपनी-अपनी समझ के अनुसार सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को सफल और असफल की श्रेणी में रखा है।
दिग्विजय सिंह की बात से वंशवाद की हिमायत होने की महक आती है तो द्विवेदी की ओर से वंशवाद की समाप्ति की ओर इशारा। इन नेताओं से हटकर देखें तो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का तिलिस्म टूटता नज़र आ रहा है। कांग्रेस के अंदर अब नेहरू गांधी परिवार के चमत्कार का असर अब फीका पड़ने लगा है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ही भ्रष्टाचार पर अपना मुंह बंद रखकर देश की जनता की नजरों से उतर चुके हैं।
राहुल गांधी के अंदर देश को संभालने का माद्दा नजर नहीं आता है, वहीं दूसरी ओर टाईम मेग्जीन ने एक बार फिर पी चिदम्बरम को मनमोहन सिंह की जगह को भरने वाला बताया है।
देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस जिसे आजादी के उपरांत महात्मा गांधी ने भंग करने की सिफारिश की थी, वो देश में आज अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष करती नजर आ रही है।
कांग्रेस के अंदर वंशवाद की जड़ किसी से छिपी नहीं है। इस जड़ में पंडित जवाहर लाल नेहरू के उपरांत इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, वरूण गांधी, सियासी बियावान में विचरण कर रहे हैं। हालांकि इनमें से मेनका और वरूण कांग्रेस से बाहर हैं।
नब्बे के दशक में नरसिंहराव और सीताराम केसरी ने कांग्रेस को कुछ समय तक नेहरू गांधी परिवार की छाया से दूर रखा किन्तु उसके बाद एक बार फिर इस वटवृक्ष पर कुछ निकम्मे कांग्रेसियों ने परजीवी जीवाणु की तरह कांग्रेस की बागडोर तथा सत्ता की धुरी एक बार फिर सोनिया गांधी के पास लाकर रख दी और जैसे ही राहुल गांधी सोचने समझने के लायक हुए उन्हें भी महिमा मण्डित करना आरंभ कर दिया गया।
राहुल गांधी भी इन कांग्रेस के मठाधीशों के रंग में ही रंग गए। बाद में जब राहुल को अहसास हुआ कि उनके पैरों के नीचे जमीन ही नहीं है तो वे हतप्रभ रह गए। राहुल ने धीरे धीरे अपने कदम वापस खींचे और प्रधानमंत्री ना बनने की अपनी मंशा जाहिर कर दी। फिर क्या था राहुल को आगे कर सत्ता की मलाई चखने वाले निठल्लों को यह बात रास नहीं आई और उन्होंने फिर से राहुल के पीएम बनने की संभावनाओं को हवा देना आरंभ कर राहुल के मन में पीएम बनने की अभिलाषाएं जगाना आरंभ कर दिया।
कांग्रेस के इन नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह इक्कीसवीं सदी का दूसरा दशक है। जनता जाग चुकी है, मीडिया को प्रलोभन देकर आप अपने कब्जे में ले सकते हैं पर सोशल मीडिया ने अपनी जो दमदार मौजूदगी दर्ज कराई है वह निश्चित तौर पर सियासी लोगों के माथे पर पसीने की बूंदे छलकाने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती है।
आज के दौर में राज नेहरू गांधी परिवार का ही चल रहा है। देश में उनकी मंशा कि बिना पत्ता भी नहीं हिल पा रहा है। मनमोहन सिंह देश के मुखिया जरूर हैं पर उनकी भी इतनी ताकत नहीं कि वे अपनी मर्जी से देश को चला सकें। देश की सत्ता और शक्ति का शीर्ष केंद्र सालों से 10 जनपथ में केंद्रित है।
42 साल के अनुभवहीन पालीटिशियन राहुल गांधी आज भी अपनी मां श्रीमति सोनिया गांधी के मानिंद लिखा लिखाया भाषण पढ़ रहे हैं। उद्योगपतियों से रूबरू राहुल के भाषण के दौरान उनका एक पन्ना कहीं खो गया तो वे बोल उठे, I lost it…!
क्या यही अनुभवहीन राजनेता देश को इक्कीसवीं सदी का सपना दिखाने में सफल हो पाएंगे? कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की देश के हालातों और भ्रष्टाचार को छोड़कर अन्य बेमतलब के विषयों पर बयानबाजी को देखकर तो लगता है कि इक्कीसवीं सदी का सपना तो मात्र एक भ्रम है!
इक्कीसवीं सदी का सपना देशवासियों ने बड़े ही चाव के साथ देखा था। आज इक्कीसवीं सदी का तेरहवां साल आधा बीतने को है, पर इसके बाद भी आज देश के रियाया अपने आप को गोरे ब्रितानियों के बजाए स्वदेशी कालों की गुलाम समझ रही है।
जनता को जो मिलना चाहिए वह उसे मिल ही नहीं पा रहा है। अनुसूचित जाति और जनजाति को देश की मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण का प्रावधान संविधान में दस सालों के लिए किया गया था। आज संविधान बने छः दशक से ज्यादा समय हो गया है पर देश के हुक्मरान इन्हें मुख्य धारा में ला नहीं पाए हैं, परिणामस्वरूप आज भी आरक्षण का जिन्न सामान्य वर्ग पर हावी है।
इसकी काट के रूप में जनार्दन द्विवेदी सोनिया-मनमोहन के दो पावर सेंटर वाले फार्मूले को सफल निरूपित करते हैं। समझ में नहीं आता कि दो राजनेता इस तरह परस्पर विरोधी बयान देकर जनता को भ्रमित क्यों करना चाह रहे हैं। इसके पीछे इन नेताओं का क्या कोई छुपा हुआ एजेंडा है? उधर टाईम पत्रिका एक बार फिर पूरी ईमानदारी के साथ मनमोहन सिंह की जगह को भरने वाल व्यक्ति के तौर पर पी चिदम्बरम का नाम आगे कर रही है।
दिग्विजय सिंह या जनार्दन द्विवेदी जो चाहे कहें पर वस्तुस्थिति यह है कि देश में सत्ता के दो नहीं तीन केंद्र हैं। एक हैं 7 रेसकोर्स रोड पर रहने वाले प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, दूसरी 10 जनपथ में रहने वाली यूपीए अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी और तीसरे 12 तुगलक लेन में रहने बनाने वाले राजकुमार राहुल गांधी।