जन स्वास्थ्य अभियानों के जोर पकड़ने के बावजूद धूम्रपान की वजह से दुनिया भर में होने वाले मौतों की संख्या बढ़ रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार धूम्रपान की वजह से हर साल लगभग 60 लाख लोग मारे जा रहे हैं और इनमें से अधिकतर मौतें कम तथा मध्यम आय वाले देशों में हो रही हैं।
डब्ल्यूएचओ ने कल पनामा में एक सम्मेलन के दौरान अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि अगर ऐसा ही रहा तो वर्ष 2030 में हर साल धूम्रपान की वजह से मारे जाने लोगों की संख्या बढ़कर 80 लाख हो जाएगी।
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 में तंबाकू की वजह से होने वाली अनुमानित मौतों में से लगभग 80 प्रतिशत मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होंगी।
डब्ल्यूएचओ की महानिदेशक डॉक्टर मार्ग्रेट चान ने कहा कि अगर हम तंबाकू के विज्ञापन, प्रचार और प्रायोजन पर रोक नहीं लगाते तो पहले की तुलना में अधिक लुभावने तरीके से प्रचार करने वाला तंबाकू उद्योग, तंबाकू सेवन के प्रति किशोरों और युवाओं को आकर्षित करता रहेगा।
चान ने कहा कि हर देश की जिम्मेदारी है कि वह अपने लोगों की तंबाकू जनित बीमारियों, विकारों और मौतों से बचाव करे।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इस साल धूम्रपान की वजह से मरने वाले लोगों में से 50 लाख लोग तंबाकू का सेवन कर रहे थे या पूर्व में किया करते थे जबकि 6,00,000 से अधिक लोगों ने परोक्ष धूम्रपान की वजह से जान गंवाई। माना जाता है कि तंबाकू सेवन की वजह से 20वीं सदी में 10 करोड़ लोगों की मौत हुई थी।
डब्ल्यूएचओ ने आगाह किया है कि किसी नाटकीय बदलाव को छोड़ दें तो इस सदी में तंबाकू सेवन की वजह से मारे जाने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 1 अरब हो सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के ‘प्रीवेन्शन ऑफ नॉनकम्युनिकेबल डिजीज’ विभाग के निदेशक डॉ डगलर बेचर ने पनामा में संपन्न बैठक में कहा ‘हम जानते हैं कि तंबाकू के विज्ञापन, प्रचार और प्रायोजन पर पूरी तरह प्रतिबंध ही कारगर हो सकता है।’
उन्होंने कहा ‘तंबाकू नियंत्रण उपायों के साथ साथ इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाले देश कुछ वर्ष के अंदर ही तंबाकू के उपयोग में कमी लाने में सफल रहे हैं।’
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 92 देशों के 2.3 अरब लोगों को धूम्रपान पर किसी न किसी तरह लगाए गए प्रतिबंधों से लाभ हुआ है।
यह संख्या पांच साल पहले के आंकड़े की तुलना में दोगुनी लेकिन विश्व आबादी की मात्र एक तिहाई ही है।